रावण दुवारा लक्ष्मण को दिए उपदेश
रावन की प्रजा ने रावण से कहा की श्री राम के नाम के पत्थर भी पानी पर तैरते है वो तो साक्षात् भगवान् है ,
तो रावण ने प्रजा से कहा की मैं भी यह चमत्कार कर सकता हु मैं भी पत्थर पर अपना नाम लिखकर उसे तैरा सकता हूँ तो प्रजा को बहुत आशचर्य हुआ , जब रावण इसका प्रमाण देने गए तो उन्होंने एक पत्थर लिया और उस पर रावण लिख दिया और उसे पानी में फेंक दिया तो आश्चर्य हुआ की रावण तो एक दैत्य है फिर भी उसके नाम के पत्थर पानी पर तैरने लग गए। प्रजा ने मान लिया की रावण भी भगवान से कम नहीं है।
लेकिन यह बात रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी को नहीं जमी , मंदोदरी रावण से बोली हे प्राणनाथ मुझे पता है की आप भगवान नहीं हो न ही आपके अंदर ऐसी कोई इच्छा शक्ति है की आप पत्थर को पानी पर तेरा सको तो आपने यह चमत्कार कैसे किया ,
जवाब में रावण के कहा : मैंने एक पत्थर पर अपना नाम जरूर लिखा था लेकिन उस पत्थर को पानी में फेंकने से पहले मैंने पत्थर से धीरे से कहा "तुम्हे श्री राम की सौगंध अगर डूबा तो " सन्सार के कण कण में श्री राम बसते है तो भला यह पत्थर उनकी बात की अवज्ञा कैसे कर सकता है।
रामायण हमारे जीवन का एक पवित्र ग्रन्थ है। बचपन से हम भगवान् श्री राम की कथा टीवी या हमारे बुजुर्गों से सुनते आ रहे है। लोग भगवान् श्री राम की कथा सुनते-सुनते कई पड़ते है। हमारे देश में आज भी रामायण को अपना जीवन का आधार मानकर लोग रामायण को टेलीविज़न में बहुत च्याव से देखते है।
भारत में लोग भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जानते है। उनका यह नाम उनके नीति शास्त्रों के लिए रखा गया था। वो एक बहुत बड़े विद्वान् थे तथा भगवान् विष्णु के अवतार थे। उन्होंने पृथ्वी पर अपना जनम राक्षसों के संघार के लिए लिया था। त्रेता युग में रावण नाम के महामानव ने सम्पूर्ण विश्व और तीनों लोको पर अपने नाम का डंका बजा दिया था। रावण को उनके कई नाम से जाना जाता है ,जैसे दशानन आदि।
कहा जाता है की रावण अपनी मर्त्यु के कारण खुद ही थे। क्योंकि वे जानते थे भगवान् के हाथों से मृत्यु ही उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकती है। रावण एक बहुत बड़े विद्वान् थे। तीन लोको में उनके जितना ज्ञानी पुरुष कोई नहीं था। उन्हें चारों वेदों का ज्ञान था। लेकिन अपने घमंड और अधर्म के रास्ते पर चलने के कारण भगवान राम दुवारा उनका वध कर दिया गया था। वे ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी शिव भक्ति से भगवान शिव को प्रश्न कर वरदान मांग लिए थे। रावण ब्राह्मण कुल के थे। रावण के पिता ब्राह्मण और माता दैत्य (असुर) थी। उन्हीने अपने जीवन में बहुत अधर्म किए। जब रावण मृत्यु के अंतिम चरण पर थे तो भगवान् राम ने लक्षमण से कहा की हे लक्ष्मण तुम रवां से उनका अनुभव लेकर आओ। अनुभव एक ऐसी चीज़ है जिसे हम खरीद नहीं सकते।
रावण दुवारा लक्ष्मण को दिए उपदेश यूँ थे की
रावण ने लक्ष्मण से कहा :
रावण का पहला उपदेश यह था की "मैं कुल में श्री राम से बड़ा हु , मेरी सेना तुम्हारी सेना से काफी विशाल है , मेरी सेना में हज़ारों दैत्य है और तुम्हारी सेना में सिर्फ चँद मुट्ठी भर वानर , मेरी सेना में हज़ारों रथ अश्व है और श्री राम के पास सिर्फ वानरओं की सामान्य सेना , फिर भी मैं पराजित होकर मर्त्यु सैया पर पड़ा हु और श्री राम अपने पैरों पर खड़े है
इसका कारण है मेरा भाई मेरे विरोध में खड़ा है और श्रीराम का भाई यानी लक्ष्मण आप उनके साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़े हो। कभी भी अपने भाई का साथ मत छोड़ों चाहे भाई कितना ही आपके विपक्ष में क्यों न हो "
"घर का भेदी लंका ढाये " सायद इसी उपदेश पर यह कहावत बानी है।
रावण का दूसरा उपदेश यह था की "इंसान को कभी भी अपने शत्रु को कमजोर नहीं समझना चाहिए , क्योंकि जिसे हम अक्सर कमजोर समझते है वो ही हमसे अधिक ताकतवर साबित होता है। हनुमान को कमजोर समझकर उन्हें जिन्दा छोड़ने की गलती की सजा पूरी लंका को जलकर भुगतनी पड़ी थी। "
रावण का तीसरा उपदेश यह था की "खुद की शक्तियों का कभी गलत दुरूपयोग नहीं करना चाहिइ हमेशा सत्य के मार्ग पर ही चलना चाहिए। घमंड इंसान को ऐसे तोड़ देता है जैसे दांत सुपारी को। "
रावण का चौथा उपदेश यह था की "इंसान को सदैव अपने हितैषियों की बात माननी चाहिए क्योंकि हितैषी कभी हमारा बुरा नहीं चाहता है।
विभीषण मेरा भाई मेरा हितेषी था ,और अगर मैं विभीषण की बात मान लेता तो सायद मैं आज म्रत्यु सैया अपर न गिरा होता। "
आपके माता पिता से बड़ा आपका कोई हितेषी नहीं है।
रावण का पांचवा उपदेश यह था की "हमें मित्र और शत्रु का भलीभाती ज्ञान होना चाहिए की कोण हमारा मित्र है और कौन शत्रु , कई बार हम जिसे अपना मित्र समझते है वही असलियत में हमारा शत्रु होता है और जिसे हम अपना शत्रु समझ ते है वो हमरा मित्र होता है।"
रावण का छटां उपदेश यह था की "शुभ कार्य में कभी देर मत करो, उसे शीघ्र संपूर्ण करो क्योंकि जीवन की डोर का पता नहीं कब डो टूट जाए रावण के कई सपने थे लेकिन उन्हें वो आलस के कारण टालता रहा और और वे सपने अपूर्ण रह गए। "
अगर आपको भी रावण दुवारा दिए गए उपदेश अच्छे लगे हो तो इसे अपने दस्तों में शेयर करना भूलें।
रावन की प्रजा ने रावण से कहा की श्री राम के नाम के पत्थर भी पानी पर तैरते है वो तो साक्षात् भगवान् है ,
तो रावण ने प्रजा से कहा की मैं भी यह चमत्कार कर सकता हु मैं भी पत्थर पर अपना नाम लिखकर उसे तैरा सकता हूँ तो प्रजा को बहुत आशचर्य हुआ , जब रावण इसका प्रमाण देने गए तो उन्होंने एक पत्थर लिया और उस पर रावण लिख दिया और उसे पानी में फेंक दिया तो आश्चर्य हुआ की रावण तो एक दैत्य है फिर भी उसके नाम के पत्थर पानी पर तैरने लग गए। प्रजा ने मान लिया की रावण भी भगवान से कम नहीं है।
लेकिन यह बात रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी को नहीं जमी , मंदोदरी रावण से बोली हे प्राणनाथ मुझे पता है की आप भगवान नहीं हो न ही आपके अंदर ऐसी कोई इच्छा शक्ति है की आप पत्थर को पानी पर तेरा सको तो आपने यह चमत्कार कैसे किया ,
जवाब में रावण के कहा : मैंने एक पत्थर पर अपना नाम जरूर लिखा था लेकिन उस पत्थर को पानी में फेंकने से पहले मैंने पत्थर से धीरे से कहा "तुम्हे श्री राम की सौगंध अगर डूबा तो " सन्सार के कण कण में श्री राम बसते है तो भला यह पत्थर उनकी बात की अवज्ञा कैसे कर सकता है।
रामायण हमारे जीवन का एक पवित्र ग्रन्थ है। बचपन से हम भगवान् श्री राम की कथा टीवी या हमारे बुजुर्गों से सुनते आ रहे है। लोग भगवान् श्री राम की कथा सुनते-सुनते कई पड़ते है। हमारे देश में आज भी रामायण को अपना जीवन का आधार मानकर लोग रामायण को टेलीविज़न में बहुत च्याव से देखते है।
भारत में लोग भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जानते है। उनका यह नाम उनके नीति शास्त्रों के लिए रखा गया था। वो एक बहुत बड़े विद्वान् थे तथा भगवान् विष्णु के अवतार थे। उन्होंने पृथ्वी पर अपना जनम राक्षसों के संघार के लिए लिया था। त्रेता युग में रावण नाम के महामानव ने सम्पूर्ण विश्व और तीनों लोको पर अपने नाम का डंका बजा दिया था। रावण को उनके कई नाम से जाना जाता है ,जैसे दशानन आदि।
कहा जाता है की रावण अपनी मर्त्यु के कारण खुद ही थे। क्योंकि वे जानते थे भगवान् के हाथों से मृत्यु ही उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकती है। रावण एक बहुत बड़े विद्वान् थे। तीन लोको में उनके जितना ज्ञानी पुरुष कोई नहीं था। उन्हें चारों वेदों का ज्ञान था। लेकिन अपने घमंड और अधर्म के रास्ते पर चलने के कारण भगवान राम दुवारा उनका वध कर दिया गया था। वे ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी शिव भक्ति से भगवान शिव को प्रश्न कर वरदान मांग लिए थे। रावण ब्राह्मण कुल के थे। रावण के पिता ब्राह्मण और माता दैत्य (असुर) थी। उन्हीने अपने जीवन में बहुत अधर्म किए। जब रावण मृत्यु के अंतिम चरण पर थे तो भगवान् राम ने लक्षमण से कहा की हे लक्ष्मण तुम रवां से उनका अनुभव लेकर आओ। अनुभव एक ऐसी चीज़ है जिसे हम खरीद नहीं सकते।
रावण दुवारा लक्ष्मण को दिए उपदेश यूँ थे की
रावण ने लक्ष्मण से कहा :
रावण का पहला उपदेश यह था की "मैं कुल में श्री राम से बड़ा हु , मेरी सेना तुम्हारी सेना से काफी विशाल है , मेरी सेना में हज़ारों दैत्य है और तुम्हारी सेना में सिर्फ चँद मुट्ठी भर वानर , मेरी सेना में हज़ारों रथ अश्व है और श्री राम के पास सिर्फ वानरओं की सामान्य सेना , फिर भी मैं पराजित होकर मर्त्यु सैया पर पड़ा हु और श्री राम अपने पैरों पर खड़े है
इसका कारण है मेरा भाई मेरे विरोध में खड़ा है और श्रीराम का भाई यानी लक्ष्मण आप उनके साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़े हो। कभी भी अपने भाई का साथ मत छोड़ों चाहे भाई कितना ही आपके विपक्ष में क्यों न हो "
"घर का भेदी लंका ढाये " सायद इसी उपदेश पर यह कहावत बानी है।
रावण का दूसरा उपदेश यह था की "इंसान को कभी भी अपने शत्रु को कमजोर नहीं समझना चाहिए , क्योंकि जिसे हम अक्सर कमजोर समझते है वो ही हमसे अधिक ताकतवर साबित होता है। हनुमान को कमजोर समझकर उन्हें जिन्दा छोड़ने की गलती की सजा पूरी लंका को जलकर भुगतनी पड़ी थी। "
रावण का तीसरा उपदेश यह था की "खुद की शक्तियों का कभी गलत दुरूपयोग नहीं करना चाहिइ हमेशा सत्य के मार्ग पर ही चलना चाहिए। घमंड इंसान को ऐसे तोड़ देता है जैसे दांत सुपारी को। "
रावण का चौथा उपदेश यह था की "इंसान को सदैव अपने हितैषियों की बात माननी चाहिए क्योंकि हितैषी कभी हमारा बुरा नहीं चाहता है।
विभीषण मेरा भाई मेरा हितेषी था ,और अगर मैं विभीषण की बात मान लेता तो सायद मैं आज म्रत्यु सैया अपर न गिरा होता। "
आपके माता पिता से बड़ा आपका कोई हितेषी नहीं है।
रावण का पांचवा उपदेश यह था की "हमें मित्र और शत्रु का भलीभाती ज्ञान होना चाहिए की कोण हमारा मित्र है और कौन शत्रु , कई बार हम जिसे अपना मित्र समझते है वही असलियत में हमारा शत्रु होता है और जिसे हम अपना शत्रु समझ ते है वो हमरा मित्र होता है।"
रावण का छटां उपदेश यह था की "शुभ कार्य में कभी देर मत करो, उसे शीघ्र संपूर्ण करो क्योंकि जीवन की डोर का पता नहीं कब डो टूट जाए रावण के कई सपने थे लेकिन उन्हें वो आलस के कारण टालता रहा और और वे सपने अपूर्ण रह गए। "
अगर आपको भी रावण दुवारा दिए गए उपदेश अच्छे लगे हो तो इसे अपने दस्तों में शेयर करना भूलें।
Lajwab bhai
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