रावण दुवारा लक्ष्मण को दिए उपदेश रावन की प्रजा ने रावण से कहा की श्री राम के नाम के पत्थर भी पानी पर तैरते है वो तो साक्षात् भगवान् है , तो रावण ने प्रजा से कहा की मैं भी यह चमत्कार कर सकता हु मैं भी पत्थर पर अपना नाम लिखकर उसे तैरा सकता हूँ तो प्रजा को बहुत आशचर्य हुआ , जब रावण इसका प्रमाण देने गए तो उन्होंने एक पत्थर लिया और उस पर रावण लिख दिया और उसे पानी में फेंक दिया तो आश्चर्य हुआ की रावण तो एक दैत्य है फिर भी उसके नाम के पत्थर पानी पर तैरने लग गए। प्रजा ने मान लिया की रावण भी भगवान से कम नहीं है। लेकिन यह बात रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी को नहीं जमी , मंदोदरी रावण से बोली हे प्राणनाथ मुझे पता है की आप भगवान नहीं हो न ही आपके अंदर ऐसी कोई इच्छा शक्ति है की आप पत्थर को पानी पर तेरा सको तो आपने यह चमत्कार कैसे किया , जवाब में रावण के कहा : मैंने एक पत्थर पर अपना नाम जरूर लिखा था लेकिन उस पत्थर को पानी में फेंकने से पहले मैंने पत्थर से धीरे से कहा "तुम्हे श्री राम की सौगंध...
काश बनाने वाले ने हमें भी किताब बनाया होता , वो पढती पढ़ती सो जाती और हमें सीने से लगाया होता। और यूँ करके बेइंतेहा जुल्म मुझ पर कहती आज तुम्हे माफ़ करते है , धुल जमी थी खुद के चहरे पर और कहती चलो आइना साफ़ करते है। मेरी फांसी मुकर्रर करने के बाद वो मुस्कुराई बहुत होगी , न जाने कोनसा वहां उसके सर चढ़ गया , अरे उसके जाने के बाद जीने की तमन्ना तो वैसे भी न रही , वो शख्श तो मेरे हक़ में फैसला कर गया। बनाकर चादर उसकी खुसबू की पूरी रात ओढ़ लेता हु , मैं चाहता हूँ उसे जी भरकर देखना लेकिन जब नज़र आती तो नज़रें मोड़ लेता हूँ। अगर वो बेवफा है तो मत कहो बुरा उसको, जो हुआ सो हुआ खुश रखे खुदा उसको , वो नज़र ना आये तो तलाश में रहना उसके , और जब कबि दिखे तो पलट कर मत देखना उसे। दुनिया करें जिस पर नाज़ उस अभिमान का बेटा , हाँ मुझे फक्र है और गर्व से कहता हु मैं किसान का बेटा हु। धोखा वफ़ा की राह में खाये है बहोत लेकिन किसी के साथ धोखा नहीं किया , हमने गुज़ार दी फकीरी में ज़िन्दगी लेकिन कभी ज़मीर का सौद...